Internal structure of Earth | prithvi ki antarik sanrachna

 दोस्तों आज हम आपके लिए  Internal structure of Earth | prithvi ki antarik sanrachna  की नोट्स  लेकर आए है , जो   Competitive exams के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है |

इस Internal structure of Earth | prithvi ki antarik sanrachna में  ऐसे Topics पर फोकस किया गया है जो Competitive exams की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है | इस नोट्स को तैयार करने में विभिन बुक्स का प्रयोग किया गया है जिससे आपको एकदम सही और सटीक जानकारी प्रदान कराई जा सके , और जो  आपके Competitive exams के लिए उपयोगी साबित हो  |

 पृथ्वी की आतंरिक संरचना  ( Internal structure of Earth)

पृथ्वी की त्रिज्या 6370 km है | पृथ्वी की आतंरिक परिस्थितियों के कारण ये संभव नही है कि कोई पृथ्वी के केंद्र तक पहुचकर उसका निरीक्षण कर सके |  

पृथ्वी की आतंरिक भाग की बनावट का सबसे अच्छा साक्ष्य भूकंप विज्ञान है|  

शुरू में हमे जो पृथ्वी की आतंरिक संरचना की जानकारी मिली वो निम्न आधार पर मिली  |

A. 1. दबाव                           B. ज्वालामुखी क्रिया से   

    2.घनत्व  

    3. ताप  

       भूकंप विज्ञान ही ऐसा साक्ष्य है जिससे पृथ्वी की आतंरिक संरचना के बारे में कुछ वैज्ञानिक साक्ष्य मिले | 

भूकंप के दौरान पृथ्वी पर तीन तरह की तरंगे उत्पन्न होती है  |

1. प्राथमिक तरंगे (primary wave)- ठोस और तरल  

2. द्वितीयक तरंगे (secondary wave) ठोस 

3. धरातलीय तरंगे (longitudinal wave) 

p and s wave

P और S तरंगो से पृथ्वी की आतंरिक संरचना के बारे में जानकारी मिलती है | 

जहाँ घनत्व समान होता है ये तरंगे वहां सीधी चलती है  |

P और S तरंगो की गति व भ्रमण गति के आधार पर पृथ्वी की आतंरिक संरचना के बारे में कुछ परिणाम मिले | 

भूकंप तरंगे पृथ्वी की सतह पर जहाँ टकराती है उसे भूकंप का केंद्र कहते है | 

भूकंप तरंगो के पृथ्वी सतह पर अंकन से पता चला की पृथ्वी के अन्दर ये तरंगे वक्राकार चलती है जिससे पता चलता है कि पृथ्वी के अन्दर अलग अलग घनत्व वाली परते है  |

S तरंग पृथ्वी के भीतर 30km की गहराई के बाद  प्रवेश  नहीं  कर पाती है तथा वक्राकार होकर सतह पर मुड़ जाती है | 

P तरंग जो ठोस व द्रव दोनों में संचरण कर सकती है 30 km की गहराई के बाद भी चलती है तथा गति मे विचलन के बावजूद  कोर  को पार जाती है कोर में  P तरंग की गति दुर्बल हो जाती है जिससे  पता चलता है, कोर पूरी तरह ठोस नहीं है कुछ द्रव भी है  | 

भूकंपीय तरंगो की गति में अंतर तभी आता है जब माध्यम के घनत्व में अंतर आता है  |

गति के आधार पर इन तरंगो को तीन वर्गों में बांटा गया|  

1. P और S 

2. p*और s* 

3. Pg और Sg   

अत: इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पृथ्वी के अन्दर तीन अलग अलग घनत्व वाली परते पायी जाती है| 

अत; भूकंप विज्ञानं के साक्ष्य के आधार पर पृथ्वी की आतंरिक बनावट को तीन वृहद् मंडलों में बांटा गया है  

1. क्रस्ट(भू-पर्पटी) 

2. मेंटल(प्रावार) 

3. CORE(अंतरिम)  

Internal structure of Earth | prithvi ki antarik sanrachna

क्रस्ट –  

      क्रस्ट का 0 -30 km तक विस्तार है  | पृथ्वी के क्रस्ट मे सबसे अधिक मात्रा मे आक्सीजन पाया जाता है उसके  बाद  Si , Al और Fe पाया जाता है |

         ऑक्सीजन     >  Si  >    Al   >    Fe  

  इसलिए इस परत को SiAl (सियाल) भी कहते है  |

  क्रस्ट का घनत्व 3.0 ग्राम घन cm है | 

 

 

मेंटल-

    इस परत का  30 – 2900 km तक विस्तार है  तथा इसमे  Si और Mg जैसे खनिजो को प्रधानता है इसलिए इस परत को SiMa( सीमा) भी कहते है |

इस परत में पृथ्वी का सर्वाधिक भार और द्रव्यमान होता है  |

इसमें पृथ्वी का 83% आयतन और 68% द्रव्यमान निहित है   |

CORE- 

        इस परत का 2900- 6370km तक विस्तार  है  , तथा  Ni तथा Fe जैसे भारी खनिजों  की प्रधानता  है इसलिए  इस परत को NiFe(निफे) भी कहते है|  

पृथ्वी के केंद्र का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस होता है | 

CORE तरल अवस्था में होना चाहिए परन्तु अत्यधिक दबाव के कारण वो ठोस की तरह व्यवहार करता है  |  

    पृथ्वी के अन्दर  एक परत से दूसरी परत के बीच मे एक संक्रामक क्षेत्र  या असंबंधता  ( Discontinuity Zone) पायी जाती  है | 
जो निम्न लिखित है |

कोनराड असम्बंधता – ऊपरी क्रस्ट और निचले क्रस्ट के बीच |

मोहविसिक असम्बंधता- निचले क्रस्ट और ऊपरी मेंटल के बीच  |

रेपेटी असम्बंधता-  ऊपरी मेंटल और निचले मेंटल के बीच  |

गुटेनबर्ग असम्बंधता- निचले मेंटल और ऊपरी core के बीच  |

लेहमन असम्बंधता-  ऊपरी core और निचले core के बीच | 

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